कविता

खोई खोई सी इक बात*—मृदुला घई 

वो मदहोश सी इक रात 
वो अधूरी सी इक मुलाक़ात 
वो अधखिली सी चाँदनी 
में लिपटे रेशमी जज़्बात 
खामोश से तुम 
खामोश से हम 
खोई खोई सी इक बात
खोई खोई सी इक बात
ना दूर ना पास 
अनजाना सा इक एहसास 
वो बेशुमार कशिश 
में खुमारी की मिठास 
खामोश से तुम 
खामोश से हम 
खोई खोई सी इक बात 
खोई खोई सी इक बात
इन आँखों में अफसाने 
दस्तक के कई बहाने 
आहट थी सांसों में 
होंठ शब्दों से अनजाने 
खामोश से तुम 
खामोश से हम 
खोई खोई सी इक बात 
खोई खोई सी इक बात
मुझ में तुम्हारे 
तुम में मेरे 
अक्स के बसेरे
में नाम के घेरे
खामोश से तुम 
खामोश से हम 
खोई खोई सी इक बात 
खोई खोई सी इक बात