हिमाचल प्रदेश में दालचीनी उत्पादन का पायलट प्रोजेक्ट शुरू

डॉक्टर गिरधारी  लाल महाजन

नई दिल्ली। हिमाचल प्रदेश के जनजातीय और बर्फीले क्षेत्रों में हींग उत्पादन के बाद अब राज्य के निचले क्षेत्रों में दालचीनी पैदा करने की परियोजना से हिमाचल देश में मसाला उत्पादन में राष्ट्रीय मानचित्र पर उभरेगा /हिमाचल प्रदेश में दालीचीनी मसाले उगाने की पायलट परियोजना ऊना ज़िला में शुरु की गई है। जिसकी सफलता से राज्य के नीचले क्षेत्रों में दालचीनी मसालों का वाणिज्यक स्तर पर उत्पादन शुरु किया जा सकेगा। अभी तक दालचीनी राज्य में जंगलों में प्रकृतिक तौर पर उगती है तथा यह सामान्यतः राज्य के जंगलों में समुद्र तल से 350 मीटर ऊंचाई पर जंगली जड़ी बूटी/झाड़ियों के तौर पर उगती है।
दालचीनी को संगठित फसल के तौर पर उगाने वाला हिमाचल पहला राज्य बन गया है। दालचीनी मसाले की पहली पौध ऊना ज़िला के खोली गांव में रोपी गई है।राज्य में दालचीनी मसाले उगाने की पायलट परियोजना ‘‘हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर’’ तथा कृषि विभाग की संयुक्त तत्वाधान में चलाई जा रही है। इस परियोजना को हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर द्वारा भारतीय मसाला फसल अनुसंधान संस्थान केरल के संयुक्त तत्वाधान में कार्यन्वित किया जा रहा है।
इस परियोजना के कार्यन्वन के लिए हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर के वैज्ञानिकों द्वारा ऊना ज़िला में किसानों को दालचीनी फसल उगाने का प्रशिक्षण प्रदान किया गया व डेमन्स्ट्रेशन प्लांट स्थापित किए गए।
इस वर्ष राज्य के नीचले क्षेत्रों में दालचीनी फसल के विभिन्न पहलूओं पर एक हज़ार किसानों को गहन प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा ताकि वह दालचीनी की बेहतरीन प्रजातियों नवश्री, नित्यश्री, कोकण बीज आदि का सफल उत्पादन कर सकें।
पायलट परियोजना के आरंभ में ऊना ज़िला में लगभग 600-700 पौधे रोपे गए हैं तथा दालचीनी फसल को प्रोत्साहित करने के लिए पांच ज़िलों के किसानों को प्रति वर्ष 40,000 से 50,000 दालचीनी पौधे मुफ्त वितरित किए जाएंेगे तथा इनका पौधरोपण मनरेगा के माध्यम से किया जायेगा /
राज्य में प्रति वर्ष औसतन 40 हैक्टेयर भूमि को दालचीनी फसल के अर्न्तगत कवर किया जाएगा तथा आगामी पांच वर्षों में लगभग 200 हैक्टेयर भूमि को दालचीनी फसल के अर्न्तगत कवर किया जाएगा।
राज्य के कृषि मंत्री श्री वीरेन्द्र कंवर ने बताया कि राज्य के गर्म तथा आर्द्रता भरे मौसम एव सामान्य तापमान वाले ऊना, हमीरपुर, विलासपुर, कांगड़ा तथा सिरमौर ज़िलों में दालचीनी फसल सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है जहां वार्षिक 1,750-3,500 मिलीमीटर वर्षा रिकार्ड की जाती है।
दालचीनी पौध की फसल चौथे या पांचवे वर्ष में एकत्रित/काटी जा सकती है। दालचीनी फसल का पौधा चार वर्ष के बाद औसतन 125 किलो क्विल्स प्रति हैक्टेयर फसल उगाता है जबकि 10 साल के बाद पौधा औसतन 250 किलो क्विल्स प्रति हैक्टेयर की पैदावार प्रदान करता है।
हिमालय जैव सम्पदा प्रोद्योगिकी संस्थान पालमपुर तथा कृषि विभाग के फसल वैज्ञानिक क्षेत्र में फील्ड भ्रमण, सेमिनार, प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से प्रतिवर्ष पांच जिलों के औसतन एक हज़ार किसानों को दालचीनी उगाने के बैज्ञानिक पहलुओं और फसल प्रबंधन की गहन जानकारी देंगे /
इस फसल के सफल प्रायोगिक उत्पादन के बाद इन ज़िलों से जुड़े क्षेत्रों को दालचीनी फसल के अर्न्तगत लाया जाएगा जो कि भौगोलिक, पर्यावरण तथा परिस्थितियों के तौर पर फसल उत्पादन के लिए अनुकूल होंगे।
इस समय दालचीनी की फसल असंगठित तौर पर तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक में उगाई जाती है तथा स्वास्थ्य एवं विशिष्ट गंध की वजह से इसकी देश तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी मांग है। इस समय देश में दालचीनी की औसतन प्रति वर्ष 50,319 टन डिमांड है जबकि असंगठित क्षेत्र में देश में लगभग पांच हज़ार टन दालचीनी फसल का उत्पादन किया जाता है। देश में इस समय लगभग 45,319 टन दालचीनी का आयात नेपाल, चीन, और वियतनाम जैसे देशों में किया जाता है। दालचीनी को गैर लकड़ी वन उत्पाद में महत्वपूर्ण वाणिज्यक फसल के तौर पर पंजीकृत किया गया है तथा इसके व्यवसायिक उत्पादन से राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों की आर्थिकी सुदृढ़ होगी तथा देश दालचीनी के मामले में आत्मनिर्भर बनेगा।

Get real time updates directly on you device, subscribe now.