शिमला। राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने आज हिमाचल प्रदेश में लगातार हो रहे भूस्खलन और इसके प्रभावों को कम करने के लिए विशेषज्ञों के साथ वर्चुअल माध्यम से आयोजित बैठक की अध्यक्षता की।
इस अवसर पर राज्यपाल ने प्रदेश में बार-बार होने वाले भूस्खलन के कारण जान माल के नुकसान के बारे में चिन्ता व्यक्त की और इस नुकसान को कम करने के लिए वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग से सम्बन्धित समाधानों का उपयोग करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने विशेषज्ञों और अधिकारियों से हिमाचल प्रदेश को भूस्खलन आपदा प्रबन्धन के सम्बन्ध में आदर्श राज्य के रूप में स्थापित करने के लिए एक समय सीमा के अन्दर समग्र समाधान प्रदान करने का आग्रह किया।
उन्होंने कहा कि हमें भूस्खलन के खतरों के अति संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करनी चाहिए और क्षेत्र का पता लगाने के पश्चात जोखिम का आंकलन किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि कार्य बल को भू-वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग मापदण्डों पर काम करना चाहिए।
राज्यपाल ने भूस्खलन प्रभावित क्षेत्रों के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के लिए किन्नौर को पायलट जिला के रूप में चयनित करने के निर्देश दिए।
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राज्यपाल के सचिव विवेक भाटिया ने बैठक का संचालन किया ।
निदेशक आपदा प्रबन्धन सुदेश कुमार मोक्टा ने विभाग द्वार आपदा प्रबन्धन और अनुसंधान के लिए उठाए गए विभिन्न कदमों और पहलों के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी। उन्होंने कहा कि सरकार इन मामलों से भली-भान्ति परिचित है और प्रदेश सरकार ने भारत भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के साथ मिलकर विभिन्न अनुसंधान किए हैं।
भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण कोलकता के अतिरिक्त महानिदेशक डॉ. एस. राजु, राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केन्द्र नई दिल्ली के सलाहकार एवं निदेशक डा. ओ.पी. मिश्रा, हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ए0के0 महाजन, हिमालय भू-विज्ञान संस्थान देहरादून के लैंड स्लाइड हेजर्ड ग्रुप के वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ0 विक्रम गुप्ता, राष्ट्रीय भूकम्प विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक डा0 हिमान्शु मित्तल और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने भूस्खलन से सम्बिंन्धत अपने विचार व्यक्त किए।
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