तिथियां शुभ फल देने वाली

ये पॉचों तिथियां शुभ फल देने वाली
शुक्ल पक्ष की एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुदर्शी व पौर्णमासी ये पॉच तिथियॉ उत्तम फल देने वाली होती है।इसी प्रकार से कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से पंचमी तक चन्द्रमा की कलायें उत्तम होने के कारण ये पॉचों तिथियॉ शुभ फल देने वाली होती है। फिर कृष्ण पक्ष में चन्द्रमा षष्ठी तिथि से क्षीण होने लगता है इसलिए षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी व दशमी तिथि मध्यम फलदायक होती है। कृष्ण पक्ष में एकादशी से लेकर अमावस्या तक पॉच तिथियॉ चन्द्रमा की किरणों से पूर्ण रूप से क्षीण हो जाने से अशुभ फलदायक होती है। अर्थात सामान्यतः शुक्ल पक्ष की पंचमी से कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी तक 15 तिथियॉ शुभ होता है तथा कृष्ण पक्ष पंचमी से लेकर शुक्ल चतुदर्शी तक की 15 तिथियॉ मध्यम फल देने वाली होती है।

किस तिथि को क्या करना वर्जित है
स्त्री-पुरूष दोनों के लिए नियम है कि षष्ठी तिथि के दिन तेल न लगायें, अष्टमी को मॉस का सेंवन न करें, चतुदर्शी के क्षौर कर्म {हजामत, बाल कटवाना व दाढ़ी बनाना} नहीं करना चाहिए। द्वितीया, दशमी व त्रयोदशी के दिन उबटन लगाना वर्जित है। एकादशी को चावल नहीं खाना चाहिए और अमावस्या को मैथुन {स्त्री संगम} कदापि नहीं करना चाहिए। कहीं-कहीं पर व्यतिपात, संक्रान्ति, एकादशी में, पर्व दिनों में, भद्रा और वैधृति योग में भी तेल लगाना वर्जित बताया गया है। प्रतिपदा तिथि में विवाह, यात्रा, उपनयन, चौल कर्म, वास्तु कर्म व गृह प्रवेश आदि मॉगलिक कार्य नहीं करने चाहिए।

किस तिथि को क्या करना वर्जित है
स्त्री-पुरूष दोनों के लिए नियम है कि षष्ठी तिथि के दिन तेल न लगायें, अष्टमी को मॉस का सेंवन न करें, चतुदर्शी के क्षौर कर्म {हजामत, बाल कटवाना व दाढ़ी बनाना} नहीं करना चाहिए। द्वितीया, दशमी व त्रयोदशी के दिन उबटन लगाना वर्जित है। एकादशी को चावल नहीं खाना चाहिए और अमावस्या को मैथुन {स्त्री संगम} कदापि नहीं करना चाहिए। कहीं-कहीं पर व्यतिपात, संक्रान्ति, एकादशी में, पर्व दिनों में, भद्रा और वैधृति योग में भी तेल लगाना वर्जित बताया गया है। प्रतिपदा तिथि में विवाह, यात्रा, उपनयन, चौल कर्म, वास्तु कर्म व गृह प्रवेश आदि मॉगलिक कार्य नहीं करने चाहिए।

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